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{{KKRachna
|रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल
|संग्रह=गीत-वृंदावन / गुलाब खंडेलवाल
}}
[[Category:गीत]]
<poem>
सूखा सावन,पूनो काली
रोती ही आती हैं व्रज में होली और दिवाली
पिक ने देशनिकाला पाया
मोरों ने है नृत्य भुलाया
मधु ऋतु में भी फूल न आया
नंगी रहती डाली
'दधि के मटके तोड़ गिरातीं
अब न गोपियाँ मथुरा जातीं
नित उठ देवी-देव मनातीं--
लौटे घर वनमाली
'नाथ! आप यदि व्रज में आयें
दशा वहाँ की देख न पायें
हुई सूख काँटा वे गायें
जो निज कर से पालीं'
सूखा सावन,पूनो काली
रोती ही आती हैं व्रज में होली और दिवाली
<poem>
|रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल
|संग्रह=गीत-वृंदावन / गुलाब खंडेलवाल
}}
[[Category:गीत]]
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सूखा सावन,पूनो काली
रोती ही आती हैं व्रज में होली और दिवाली
पिक ने देशनिकाला पाया
मोरों ने है नृत्य भुलाया
मधु ऋतु में भी फूल न आया
नंगी रहती डाली
'दधि के मटके तोड़ गिरातीं
अब न गोपियाँ मथुरा जातीं
नित उठ देवी-देव मनातीं--
लौटे घर वनमाली
'नाथ! आप यदि व्रज में आयें
दशा वहाँ की देख न पायें
हुई सूख काँटा वे गायें
जो निज कर से पालीं'
सूखा सावन,पूनो काली
रोती ही आती हैं व्रज में होली और दिवाली
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