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{{KKRachna
|रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल
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युगल छवि देखे ही बनती यों तो कालिंदी हैकालीउधर अधर झुकते मुरली पर, इधर भौंह तनती किन्तु एक छवि से दीपित हैतट की डाली-डाली
राधा जब भी हम ये नयन उघाड़ेंदिखती हों काँटों की तो प्रीत निरालीझाड़ें 'छाया क्यों यमुना ने पा ली'माला भी पहनें किन्तु उन्हीं में तिरछे आड़े मिले कभी वनमालीतुरत रार ठनती है
पीताम्बर भी उसे न भाये ले आई अबीर की झोलीनभ में श्याम घटा क्यों छायेराधा कभी खेलने होलीमोर मुकुट चरणों में आये तब जाकर मनती हैनाची ग्वाल बाल की टोली बजा-बजा कर ताली
युगल छवि देखे ही बनती माना कालिय भी दह में हैउधर अधर झुकते मुरली प्राण सदा रहते सहमे हैं पर, इधर भौंह तनती हैमन के कुल राग थमे हैं सुन कर धुन मतवाली
यों तो कालिंदी है काली
किन्तु एक छवि से दीपित है तट की डाली-डाली
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