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16:06, 5 अक्टूबर 2012 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=शिवदीन राम जोशी
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<poem>
झूठो संसार सार यामे कछु है ही नाहीं,
मेरा ये मेरा करत, कौन यहाँ अपना है |
आया कर करार और बीती रैन हुआ भोर,
अब तो कर गौर,देख झूठा सा सपना है |
माया भरमाया भाया काया जली बहुतों की,
मर-मर के गये लोग करके कल्पना है |
कहता शिवदीन कहो वाणी से राम-राम,
चार दिन मुकाम यामें राम-राम जपना है |
<poem>