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Kavita Kosh से
भीतर का गूँज नहीं जानी, कोलाहल मन बहला न सका
बच गयींे गयीं उमरिया के खाते
थोड़ी-सी सपनों की बातें
मरूधर की प्यार प्रबल थी, पर