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मन प्रबोध / सूरदास

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धोखैं ही धोखै डहकायौ समुझि न परी,  
विषय-रस गीध्यौ; हरि-हीरा घर माँझ गँवायौ ।
रे मन मूरख जनम गँवायौ ।
 
करि अभिमान वुषय-रस गीध्यौ, स्याम-सरन नहिं आयौ ।