भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
<sort order="asc" class="ul">
*[[हो चुके गुम सारे ख़द-ओ-खाल-ए-मंज़र और मैं / ज़ेब गौरी]]
*[[मुझ ऐसे वामांदा-ए-जाँ को बिस्तर-विस्तर क्या / ज़ेब गौरी]]
*[[तूँ बेख़बर हो तो कुछ हाल-ए-दिल सुनाऊँ तुझे / ज़ेब गौरी]]
*[[सब तिलिस्म-ए-हर्फ़-ओ-अफ़सून-ए-नवा ले जाएगी / ज़ेब गौरी]]