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|रचनाकार=शिवदीन राम जोशी
।
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चला चल मन तू ब्रज की ओर ।
जहां गोपियां राधा संग में, नांचे नन्दकिशोर ।।
वृन्दावन में कुंजगली है, तू मन सोची बात भली है ।
रास और महारास देखना, होकर प्रेम विभोर ।।
वहीं मिलेंगें श्याम सलौना, देख-देख सब कोना-कोना ।
श्यामा श्याम मिलेंगें दोनों, देखुंगा कर जोर ।।
मेर मुकुट धर पिताम्बर धर, जय-जय मोहन जय मुरलीधर ।
मोही एक डर लग रहा मनहर, कृष्णा है चित चोर।।
नन्दलाल ब्रजराज कन्हैया, पार लगाना मोरी नैया ।
कर्महीन शिवदीन दीन की, बिरियां आना दौर ।।
<poem>
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|रचनाकार=शिवदीन राम जोशी
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चला चल मन तू ब्रज की ओर ।
जहां गोपियां राधा संग में, नांचे नन्दकिशोर ।।
वृन्दावन में कुंजगली है, तू मन सोची बात भली है ।
रास और महारास देखना, होकर प्रेम विभोर ।।
वहीं मिलेंगें श्याम सलौना, देख-देख सब कोना-कोना ।
श्यामा श्याम मिलेंगें दोनों, देखुंगा कर जोर ।।
मेर मुकुट धर पिताम्बर धर, जय-जय मोहन जय मुरलीधर ।
मोही एक डर लग रहा मनहर, कृष्णा है चित चोर।।
नन्दलाल ब्रजराज कन्हैया, पार लगाना मोरी नैया ।
कर्महीन शिवदीन दीन की, बिरियां आना दौर ।।
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