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Kavita Kosh से
इक इक अदा में वो ही बहर वो ही बांकपन
पढ़ता हँू हूँ उसको मीर के दीवान की तरह
बातें हैं सर्दियों में उतरती है जैसे धूप
संासें हैं गर्म रात के तूफ़ान की तरह
कह दे कोई तो चैन से इक रात सो रहँूरहँ
बैठा हूँ अपने घर में ही मेहमान की तरह