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इंतज़ार-2 / नीरज दइया

6 bytes removed, 00:55, 16 मई 2013
<Poem>
प्रेम होने पर
तुमसे तुम्हे कहा मैंने-प्रेम एक कुआँ कुआं है,जिसमें गिर पड़ा हूँ हूं मैं
या प्रेम एक पहाड़ है
जिस पर चढ़ गया हूँ मैं ।हूं मैंै।
तुमने कहा-
मैं हूँ हूं अभी ज़मीन जमीन पर और रहना चाहती हूँहूं-इसी ज़मीन पर ।जमीन पर।
मैंने कहा-
मैं इंतज़ार करुँगा ।इंतजार करूंगा।
</poem>
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