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बंसत / नीरज दइया

619 bytes removed, 01:00, 16 मई 2013
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|रचनाकार=नीरज दइया
|संग्रह=उचटी हुई नींद / नीरज दइया
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जीवन में हमारे
आता है प्रेम बसंत की तरह
और प्रेम ही लाता है- बसंत बसंत।
वर्ष में कुछ खास दिन होते हैं-
जब होता है प्रेम ।प्रेम।
उदासी को दूर करता
प्रेम उदित होता है
सूर्य की भांति
और जगमगाता है जीवन जीवन।
हम तब जान पाते हैं
जब हमारे ही हाथों
अंतरिक्ष में पतंग बनकर
लहराता है प्रेम
 
प्रेम की पतंग
रचती है भीतर राग
दिखते हैं बाहर रंग
 
सुरीले संगीत में डूबा
नृत्य करता है मन
और प्रेम में बंधे
उडने लगते हैं हम
 
कुछ भी नहीं होता हमारे बस में
जब कटती है डोर
धड़ाम से गिरते हैं हम-
ज़मीन पर
करते नहीं प्रतीक्षा
फिर भी लौट-लौट आता है
जीवन में पुन: पुन: जीवन में प्रेमतभी लौटता है बार-बार लौटता है बसंत !हर बार बसंत!!
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