भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
{{KKCatMaithiliRachna}}
<poem>
अन्हरिए जकाँ विचारदेखू अन्हरियाक आँचरमेउतरबा-पसरबामे होइत अछि इमानदारभरि आँजुर फूल सिंगरहारएहन नहि होइत अछि जे ओ अपन भगजोगनी,अनेरे मौला गेलतरेगन, निःशब्द सन-सन स्वर कतहु अन्तः ध’ क’सभ निफिकिर रहलचलि अबैत अछि मनुक्खक एहि धरती परएते धरि जे लोकनापरवाह बा चलाकीमे।....पक्ष-विपक्षक लोकतांत्रिक चरित्र जकाँबँटैत-बाँटैत सन कहाँ अछि अन्हार जेनासमस्त विधायिका-न्यायपालिका-कार्यपालिकाहम स्वयं,अहाँ, क्योअर्थात संसद-न्यायालय-मंत्रालय।एहिना चुबैत रहत ओलतीसँ पानि...भरल धरतीक कोनो मानचित्रमेखाम्ह लगक दीपने पवित्र फकफकाइत रहत मिझएबासँ पूर्व धपाएल अन्हार, ने पुण्यात्मा प्रकाशघेरि लेत चारू कातने शुद्ध रातिक सन्नाटाघर ओसरा दलानने दिनक कार्यान्दोलित ऊँच बजैत बजारक्यों नहि चिन्ता करत अहाँक लेल आन।ने अखण्ड अभिप्राय गीड़ल जाइत बेंग जकाँ भाषाअहाँक आसमर्द ने शुद्ध हृदयक बोलसभ सुननिहार रहत पंक्तिबद्ध साँप।ने ठीकसँ नगाड़ा, ने पूरा ढोल।चूल्हिमे सुस्ताइत रहत भोर-साँझ टोल भरिक कुकुर.... भरि गाम पंचायत,बाढ़िक धार जकाँ पसरल गेलए शत्रुक मुँहभरि प्रात, विधान सभालागल फसिलक खेत धाँसिते गेल धूर-परिषद्धूर।भरि देश संसद, सभाअमीनक पुरना जरीब (कड़ी) सँ नापल जाइत रहतसमूचा सत्र धुपछाँही संवादअहाँक कोंढ़ अहाँक स्त्रीक करेज आ बेटाक मन-प्रतिवादमाटि।सौंसे समाज भोरे-भोरे भांगक दतमनि करैत रहतभरि देश गाँधीअमीनी नाप एहिना नपैत रहत, देश भरि गुजरात।कपड़ा जकाँ फाड़ैत रहतआखिर एना, ई की बात ?अहाँक विश्वास आ पौरूख...जबर्दस्त मीडिया-मायाचीरैत रहत गँहीर चौड़ा देवाल।...दारूण कार्य-कलापमेकिएक एना-घोर मट्ठाकिएक दोषी अहीं। नहि त’ ओ। ओ नहि किछु राफ-साफत’ हमके अछि कोम्हरहम अहाँक नाम तक बिसरि गेलहुँ।एम्हर कि ओम्हरविपत्ति कोन नामे सोर पाडू ?बाम कि दहिन ठाढ़साफ बुझा रहल अछि-अनदेखारदच्छिन एक रत्तीट बामा दिस टगलबाम टगल दहिनाहमरा लोकनि सभ सभक नाम एहिना बिसरि गेल छीमध्यमे विराजमान एक रत्तीी बामकयद्यपि अहुँक जोबीमे होएत भरलो काठी दियासलाइभुक-भुक इजोत उजागर अछिहमरो संगमे अगड़म-बगड़म जर्जर वस्तुजातदक्षिणक रंग बिरंगक अन्हार।सोचैत अहूँ अन्होरेमे बौआइत छी, बड़ दिनसँ सोचैत मुदा हमरा नहि कहै छीठीक-ठीक कही तँ, पचीसमे बरखक वयससँसोचैत आबि रहल हमहूँ इजोते लेल छटपटाइत छी मुदा अहाँकें नहि बजबै छी-कोनो तेहन बड़का लग्गी होइतमेघमे लगा क’ झखा लितहुँ जामुन गाछी जकाँबीच मँहक वृद्ध प्रतितामहक नामसमस्त रातिवटवृक्ष सभ धोधेरिसँ विषाह भ’ चुकल अछिमनुक्खक विचार भेल, दुस्सह अन्हारमे पर्यंतआउ सभ मिलि एकरा डाहि दी।एखनहुँ देखारजे क्यो आबए अनावश्यक मात्सर्य देखाब’...प्रज्जवलित दू-तीन-चारि रंगक फकफाइतओकर मिथ्या गुमान मारि घुस्सासँसंपूर्ण अस्तित्वकें, झाँपि क’ क’ दिअए अस्तित्वशेषलोकक आँखि-मन आ माथमेकतहु ने गड़ए चक्कू कि भाला जकाँनहि करए शोनिते शोनितामगोधरा ने हमरा गाम।यथार्थमे ढाहि दी।
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
2,244
edits