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बिहाड़िमे उड़िआइत पातक किलोलफट् ! फट् ! फट् ! फटाक् !!!कि क्षणमे वृक्ष भागि जाइछ हमरासँ दूरजनतन्त्रक टंकी फाटि गेलकि धूमिल कम्बलसँ वातायनकेंजनताक मोन पर जमल बर्फअछि झाँपि देने आन्हर बिहाड़ि ई।चेतनाक सूर्यसँ पघिल-पघिलकैक क्यूसेक्स जल-प्लावन कएल।
छोट-पैघ सब तरहकउठल अछि शब्दक भयंकर बिहाड़िगीड़ लेत हमरा सबकें, सबहक पलकेंझाँपि किताबक फोहार, अखबारक वर्षाभाषणक नदी आ बहसक नाला,सेमिनारी नहर, आश्वासनक बान्ह,विधानसभाक पोखरि, आ संसदीय डाबरसब उधिया रहल अछिउमड़ि रहल अछि हमरा चारू कात।आ हम सब भरि मुखहर पानिमे दहाइत छी।गाम आ शहर, अनास्थाकेर कण कतेगली आ सड़क,कि दृश्य झलफल खेत आ फैक्ट्री, अदृश्य, झलफल मार्गघर आ ऑफिस-शब्दक एहि बाढ़िमेदहाइत भसियाइत सब अज्ञात, छल जे ज्ञात से अज्ञात तैं।किछुपरस्पर टकरा क’ टूटि रहल अछि-योजनाक फाइल आ इतिहासक पातभविष्यक कन्टैªक्ट आ विज्ञानक प्रबन्ध।
कोन समय ई ‘हम कतय छी ? साँझ, दुपहर, वा राति कतय जाएब हम !डल झील कि ट्राम्बेक रिएक्टरहाजीपीरक चौकी कि ऊटीक जेल ?’’भेल पराजय गति केर से पूछैत छथि श्री....की आइ कालसँ औ....?की थिक ई ? संक्रमण अथवा पिपर्यय मनुक्ख आ कि राशन कार्ड ?विध्वंसक सर्किलमे घेरल सबहक प्राण !उत्तर छैक क्रान्ति आ क्रान्ति छोट-पैघ वृक्षकेर खसल-झड़ल पातकागजी अस्तित्व ल’ अंगदीप पैर परप्रार्थना करैछ: ‘जागह हे ज्योतिपुंज !हमरा नहि बरू, बुझा दहक बाट बतहा बिहाड़िकें।’आ बैसैत छथि जा क’ चाहक दोकानमे ?
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