भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
<poem>
ऐसा नहीं कि हमको, मोहब्बत नहीं मिली
बस जैसी आरज़ू थी वो चाहत यह हुआ कि हस्बे-ज़रुरत नहीं मिली
दौलत है, घर है, ख़्वाब हैं, हर ऐश है मगर
हमको ये सोचने की भी मोहलत नहीं मिली