भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
{{KKRachna
|रचनाकार=जयशंकर प्रसाद
|audio=<flashmp3>http://www.kavitakosh.org/audio/Beeti_Vibhavari_Jaag_Ree_Prasad.mp3</flashmp3>
|voiceof=अज्ञात
}}
{{KKPrasiddhRachna}}
<poem>
बीती विभावरी जाग री ! अम्बर पनघट में डुबो रही- तारा-घट ऊषा नागरी ।
खग-कुल कुल-कुल-सा बोल रहा,अम्बर पनघट में डुबो रहीकिसलय का अंचल डोल रहा, लो यह लतिका भी भर ला‌ईतारा- मधु मुकुल नवल रस गागरी ।घट ऊषा नागरी!
खग-कुल कुल-कुल-सा बोल रहाकिसलय का अंचल डोल रहालो यह लतिका भी भर ला‌ई-मधु मुकुल नवल रस गागरी अधरों में राग अमंद पिए,अलकों में मलयज बंद किए- तू अब तक सो‌ई है आली ! आँखों में भरे विहाग री !
</poem>