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खै़र महरूमियों के वो दिन तो गए
आज मेला लगा है इसी शान से
आज चाहूं चाहूँ तो इक-इक दुकां मोल लूंलूँआज चाहूं चाहूँ तो सारा जहां मोल लूंलूँ
नारसाई का जी में धड़का कहां ?
पर वो छोटछोटा-सा अल्हड़-सा लड़का कहां कहाँ ?
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नारसाई=असमर्थता