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|रचनाकार=यश मालवीय
}}
[[Category:गीत]]{{KKCatGeet}}<poem>प्यास के हर प्रश्न पर सूखा कुआँ देने लगाआग की क्या बात, पानी भी धुआँ देने लगा
प्यास के हर प्रश्न पर सूखा कुआँ देने लगा<br>मरे पशु की गंध से भारी हुए रस्तेआग की क्या बातरो रहे हैं लोग, पानी भी धुआँ केवल हादसे हँसतेजो मिला बस थके काँधों पर जुआ देने लगा <br><br>
मरे पशु की गंध से भारी युग पुरूष, युगबोध के और हुए रस्ते<br>दीखेरो भीड़ में चुप रहे हैं लोग, केवल हादसे हँसते<br>जो मिला बस थके काँधों पर जुआ सुनसान में चीख़ेमौत का डर मगर जीने की दुआ देने लगा<br><br>
युग पुरूषबस जंयती, युगबोध के और हुए दीखे<br>पुण्यतिथियों में उमर बीतीभीड़ किस घड़ी में चुप रहे पर सुनसान में चीख़े<br>कलेंडर से दोस्ती की थीमौत वक़्त नंगा तार बिजली का डर मगर जीने की दुआ छुआ देने लगा<br><br>
बस जंयती‘लोनमेला’ देख सब मेले हुए फीकेउस तरह मर लिया, पुण्यतिथियों में उमर बीती<br>मर लो इस तरह जी केकिस घड़ी में कलेंडर से दोस्ती की थी<br>वक़्त नंगा तार बिजली का छुआ जो नहीं था, क्लास अपना बुर्जु़आ देने लगा<br><br>
‘लोनमेला’ देख सब मेले हुए फीके<br>उस तरह मर लिया, मर लो इस तरह जी के<br>जो नहीं था, क्लास अपना बुर्जु़आ देने लगा<br><br> हो रहा जो, कभी उसकी भी वजह देखो<br>आँख जल जाए न सपने इस तरह देखो<br><br>
स्वयं को आवाज़ बूढ़ा ‘हरखुआ’ देने लगा
</poem>
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