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07:50, 20 अगस्त 2013 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=राशिद 'आज़र'
|संग्रह=
}}
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<poem>
अगर ये सच है
तो लोग क्या सिर्फ़ एक ही सच को मानते हैं
ये सच अगर ज़ाविया नहीं है निगाह का तो बताओ क्या है
कि मैं खड़ा हूँ जहाँ वहाँ से
तुम्हारे चेहरे का एक ही रूख़
अयाँ है
जैसे तुम आधे चेहरे के आदमी हो
अगर ये सच है तो फिर बताओ
कि झूठ क्या है
</poem>
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