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{{KKRachna
|रचनाकार=साहिर लुधियानवी
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देखा है ज़िन्दगी को कुछ इतना क़रीब से ।

चेहरे तमाम लगने लगे हैं अजीब से ।।


कहने को दिल की बात जिन्हें ढूंढ़ते थे हम,

महफ़िल में आ गए हैं वो अपने नसीब से ।


नीलाम हो रहा था किसी नाज़नीं का प्यार,

क़ीमत नहीं चुकाई गई एक ग़रीब से ।


तेरी वफ़ा की लाश पर ला मैं ही डाल दूँ,

रेशम का यह कफ़न जो मिला है रक़ीब से ।
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