भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सविता सिंह |संग्रह=नींद थी और रात थी }} खोते गए हैं मेरे ...
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=सविता सिंह
|संग्रह=नींद थी और रात थी
}}
खोते गए हैं मेरे साथ जन्मे वे सारे सपने
जो मेरे साथी थे
जिनको बचाए रखा नींद में मैंने
जैसे बचाती है नींद सपनों को अक्सर
अब मेरी याद में आँखों की खोती रोशनी की तरह
उनके खोने की उदासी बचती है
ख़ाली सड़क पर ग़ुम होती किसी प्रिय की पदचाप जैसे
मुझे नहीं मालूम वे कब खोए और कैसे
बस यह जानती हूँ वे हैं अब भी कहीं
किसी और की नींद में भटकते
याद करते पिछले अभिसारों को
{{KKRachna
|रचनाकार=सविता सिंह
|संग्रह=नींद थी और रात थी
}}
खोते गए हैं मेरे साथ जन्मे वे सारे सपने
जो मेरे साथी थे
जिनको बचाए रखा नींद में मैंने
जैसे बचाती है नींद सपनों को अक्सर
अब मेरी याद में आँखों की खोती रोशनी की तरह
उनके खोने की उदासी बचती है
ख़ाली सड़क पर ग़ुम होती किसी प्रिय की पदचाप जैसे
मुझे नहीं मालूम वे कब खोए और कैसे
बस यह जानती हूँ वे हैं अब भी कहीं
किसी और की नींद में भटकते
याद करते पिछले अभिसारों को
Anonymous user