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क्रान्ति / लाल बिहारी

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<poem>दिन रात से हलचल हलचल,
मन में रहे ना शांति।
अचके में का कहीं रे भाई,
फइलल सगरो क्रांति।।
जन-जन घुमल गली-गली में
अउर चउक-चउराहा।
मौसम के मिजाज अगिआइल
फइलल सगरो क्रांति।।
आइल उबाल दबकल जिनिगी में
गोरन के ठनकल माथा।
मोटरी बान्ह परइले सभनी
अइसन पसरल क्रांति।।
</poem>
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