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<poem>गीत जिनिगी के गावल ह आपन धरम
चोट खा-खा हँसावल ह आपन धरम

साध जिनिगी के सध ना सकल साँच बा
आस अनकर पुरावल ह आपन धरम

हँ जी, भटकीले दुनिया ई भटकावेले
राह जग के देखावल ह आपन धरम

मीत जेही मिल मतलबे के मिल
पर मिताई निभावल ह आपन धरम

देखीं जेकरा के फँसल बा मद मोह में
ओह से खुद के बँचावल ह आपन धरम

आसरा आज फेर बात से फिर गइल
बात कह के पुरावल ह आपन धरम

आँख के पानी सब गिर गइल गाँव के
पानी गँवईं जोगावल ह आपन धरम

रात-दिन उठ-बइठ बीचे बेईमान के
सत्व से मान पावल ह आपन धरम

</poem>
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