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<poem>ठाढे़ पिक बयनी मृग नयनी लिये सुमन माल,
ले लो नृपलाल बाल उमिर तिहारी है।
मालीगण मगन मन देखि के मुखार बिन्द
लाजत अरविनद रूप बसुधा से न्यारी है।
तीन लोक झाँकी ऐसी दूसरो न झाँकी
जैसी झाँकी आज झाँकी बाँकी जुगल तिहारी है।
द्विज महेन्द्र रामचन्द्र लीजिए हमारो नाथ
गजरा बहारदार पास में हमारी है।
</poem>
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