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<poem>होरी-होरी कहत दिन थोरी सी बची आली लिए पुष्प डाली चलो सरयू किनार पे।
मदन मरोर डारे पंचवान मारे अली गली-गली गाँवन में फागुन की बहार है।
फागुन में लोक लाज के समाज छूट जात बाल बृद्ध पूछे कवन आपनो सुतार है।
द्विज महेन्द्र साज के समाज आज चलो आली आवें रंग डाली सभी दशरथ कुमार के।
</poem>
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