भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
चन्द्रापीड़ शरीर हमर ई अहाँ दुहू लग रहते
कादम्बरी परस अमृतहिसँ आप्लावित नहि सड़ते॥
27.
ई शापान्त दिवस धरि सूतल जकाँ रहत नहि फेकब