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कविता / फ़्योदर त्यूत्चेव

No change in size, 13:48, 17 नवम्बर 2013
गर्जनाओं के बीच
अग्निकुण्डों के बीच
स्वतःस्फूर्त कटूकटु-कलहों के बीच
आकाश से उतर आती है
वह दिव्य शक्ति
हम धरती-पुत्रों के पास
आँखों में वैंगनी आभा लिया
अद्वेलित उद्वेलित समुद्र में वह
शान्तिप्रद उड़ेलती है द्रव।
</poem>
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