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{{KKRachna
|रचनाकार= श्रद्धा जैन
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<poem>
है छाई बेसबब दिल पर उदासी
तो क्या हमको मोहब्बत हो गई जी ?

कभी हो, राह मैं भी भूल जाऊं
बुलाये चीख कर अंदर से कोई

कभी रोशन, कभी तारीक़ दुनिया
तुम्हें भी क्या कभी लगती है ऐसी ?

ज़ज़ीरे की तरह है ज़िंदगी अब
उभरती डूबती रहती है ये भी

मेरे सर पर है साया बादलों का
ज़मीं पैरों के नीचे आग जैसी

सदा मेरी कहाँ सुन पाएंगे वो
जिन्होंने ज़िंदगी भर जी ख़ामोशी

अभी तक ख्वाब कुछ ज़िंदा हैं लेकिन
मेरी आँखों से शायद नींद खोई
</poem>
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