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{{KKRachna
|रचनाकार=उत्तमराव क्षीरसागर
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>कल जहाँ
हमने तय की थीं दिशाएँ
अपने-अपने रास्तों की
वहाँ,
जल में तैरती हुई स्मृतियाँ थीं
और कुछ न था
स्मृतियों में
फड़फड़ाती हुई मछलियाँ थीं
और कुछ न था
मछलियों में
भड़कती हुई तृषा थीं
और कुछ न था
तृषा में
किलोले करते हुए मृग थे
और कुछ न था
मृगों में
मैं था, तुम थी, सारा संसार था
और कुछ न था
- 1999 ई०</poem>
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हमने तय की थीं दिशाएँ
अपने-अपने रास्तों की
वहाँ,
जल में तैरती हुई स्मृतियाँ थीं
और कुछ न था
स्मृतियों में
फड़फड़ाती हुई मछलियाँ थीं
और कुछ न था
मछलियों में
भड़कती हुई तृषा थीं
और कुछ न था
तृषा में
किलोले करते हुए मृग थे
और कुछ न था
मृगों में
मैं था, तुम थी, सारा संसार था
और कुछ न था
- 1999 ई०</poem>