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|रचनाकार=उत्‍तमराव क्षीरसागर
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<poem>गि‍लास भर पानी की तरह
पी जाता हूँ अपनी नींद को

आँखें जैसे खाली गि‍लास

देखता हूँ, एक कमरे की
रोशनी से बाहर का अँधेरा

दूर-दूर तक अँधेरा

अँधेरे में सोया हे जग सारा
खोया-खोया-सा
अपने सुख-चैन में
मुग्‍ध-तृप्‍त

भीतर टटोलता हूँ अपने
कुछ मि‍लता नहीं !
कमरा भर रोशनी के क़त्‍ल के बाद
अपने भीतर
पाता हूँ बहुत-सी चीज़ें
अँधेरे में साफ़-साफ़
-2001 ई0
</poem>