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18:13, 30 जनवरी 2014 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=उत्तमराव क्षीरसागर
|अनुवादक=
|संग्रह=
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{{KKCatKavita}}
<poem>गिलास भर पानी की तरह
पी जाता हूँ अपनी नींद को
आँखें जैसे खाली गिलास
देखता हूँ, एक कमरे की
रोशनी से बाहर का अँधेरा
दूर-दूर तक अँधेरा
अँधेरे में सोया हे जग सारा
खोया-खोया-सा
अपने सुख-चैन में
मुग्ध-तृप्त
भीतर टटोलता हूँ अपने
कुछ मिलता नहीं !
कमरा भर रोशनी के क़त्ल के बाद
अपने भीतर
पाता हूँ बहुत-सी चीज़ें
अँधेरे में साफ़-साफ़
-2001 ई0
</poem>