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18:33, 7 फ़रवरी 2014 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=उत्तमराव क्षीरसागर
|अनुवादक=
|संग्रह=
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{{KKCatKavita}}
<poem>( कुछ अजब बात करते हैं )
सर्द रातों का
गर्म जादू
दूर - दूर ... बहुत दूर तक
( मालूम पडता है )
जैसे, फैला हो रेत का संसार
समय के कुछ टुकडे
छूटते छटपटाते - से
ज़िंदगी से दूर ... दूर भागते हुए
मिटाना चाहते हैं थकान
ढूँढते हैं पानी रेत के जंगल में
इन्हीं जंगलों से पहुँचते
हैं कई रास्ते
उन गुफाओं तक
जिनसे
निकलकर आ चुके हैं
इन सर्द रातों तक
- 1995 ई0 </poem>