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12:01, 8 फ़रवरी 2014 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=उत्तमराव क्षीरसागर
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<poem>हवाओं का झूलना
वक़्त - बेवक़्त
अपनी उब से, अपने हिंडोले पर
इन हवाओं को
मिला होता रूख, तो ज़रूर जाती
किसी षड्यंत्र में शामिल नहीं होती
हवाओं में
लटकी हैं नंगी तलवारें
सफ़ेद हाथ अँधेरों के
उजालों की शक्ल काली
अमन की कोई आख़री गुंजाइश नहीं होती ।
- 1999 ई0 </poem>