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|रचनाकार=उत्‍तमराव क्षीरसागर
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<poem>पार करनी थी नदी
तो पुल बाँधे
पार करना था सागर
तो तैरने के गुर साधे
पार करना था जीवन
तो रि‍श्‍ते-नाते बाँधे
पार करने थे जन्‍म-जन्‍मांतर
तो धरम-करम के सुर साधे


लेकि‍न जि‍न्‍हें
सबकुछ बना-बनाया मि‍ला, और
न तो कुछ बाँधना था न साधना
वे नहीं सम्‍हाल पाये कि‍सी बंधन को
उन्‍होंने न पुल बचाया न ही हुनर
न रि‍श्‍ते-नाते और न ही धरम-करम ।
तय करने के लि‍ए कोई दूरी नहीं थी
फि‍र भी भागे-बेतहाशा भागे वे
नदी से, सागर से और
अपने जन्‍म-जन्‍मांतर से


यद्यपि‍
वे जानते हैं
मुक्‍ति‍, ऐसे नहीं मि‍लती
- 2000 ई0</poem>