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|रचनाकार=अपर्णा भटनागर
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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<poem>
कितना रहस्यमय है प्रेम
जतिंगा की उन हरी पहाड़ियों सा
जो खींचती हैं असंख्य चिड़ियों को
अपने कोहरे की सघन छाह में
चन्द्र विहीन रात पसर जाती है पंखों पर
और क़त्ल हो जाती हैं कई उड़ाने एक साथ
घाटी निस्पृह भीगती रहती है
पूरे अगस्त -सितम्बर तक
रहस्यमयी हवाएं बदल लेती हैं रुख उत्तर से दक्षिण को ...
एक ठगा स्पर्श बस!
</poem>
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कितना रहस्यमय है प्रेम
जतिंगा की उन हरी पहाड़ियों सा
जो खींचती हैं असंख्य चिड़ियों को
अपने कोहरे की सघन छाह में
चन्द्र विहीन रात पसर जाती है पंखों पर
और क़त्ल हो जाती हैं कई उड़ाने एक साथ
घाटी निस्पृह भीगती रहती है
पूरे अगस्त -सितम्बर तक
रहस्यमयी हवाएं बदल लेती हैं रुख उत्तर से दक्षिण को ...
एक ठगा स्पर्श बस!
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