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दिल भी टूटा पड़ा है जाम के साथ
लफ़्ज़ होने लगे हैं सफबस्ता <ref>पन्तिबध</ref> कौन उलझा ख़्याले-ख़ाम <ref>बेकार के ख्याल</ref>के साथ
काम की बात बस नहीं होती
फिर कमर झुक गयी सलाम के साथ
बज़्म <ref>गोस्ठी</ref>आगे बढ़े ये नामुमकिन मुक्तदी <ref>पीछे नमाज़ पढ़ने वाले</ref>उठ गये इमाम <ref>नमाज़ पढ़ाने वाला</ref> के साथ
इन्क़लाब अब नहीं है थमने का
शाहज़ादे भी हैं गुलाम के साथ
बेतकल्लुफ़ बहस हों मकतब <ref>क्लास</ref>में इल्म घटता है एहतराम के साथ{{KKCatGhazal}}</poem>