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Kavita Kosh से
बदरा छाए ।
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बजा राग सुहाना
आपका आना ।
सर्दी की धूप ।
चतुर व सयाना
मैं लौट आया ।
धर्म के खेल
धधकती आग में
डालते तेल ।
लाखों बार फिर भी
मैल न जाए ।
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