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बदरा छाए ।
148
हृत्-तन्त्री पर
बजा राग सुहाना
आपका आना ।
149 प्यारे हैं रूप माँ,बेटी, बहिन
सर्दी की धूप ।
15 0150 मुझे न भाया
चतुर व सयाना
मैं लौट आया ।
15 1151
धर्म के खेल
धधकती आग में
डालते तेल ।
15 2152 गंगा नहाए
लाखों बार फिर भी
मैल न जाए ।
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