भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कट्यो रूंख / मोहन पुरी

1,048 bytes added, 01:13, 13 मई 2014
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मोहन पुरी |संग्रह=मंडाण / नीरज दइय...' के साथ नया पन्ना बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=मोहन पुरी
|संग्रह=मंडाण / नीरज दइया
}}
[[Category:मूल राजस्थानी भाषा]]
{{KKCatRajasthaniRachna}}
{{KKCatRajasthan}}
{{KKCatKavita‎}}
<poem>म्हैं देखूं हूं
जंगळ मांय
रूंख रोवता थका
आपणा-आपणा भोजन री
खोज में अपघात
कर रैया है,
घास-दोबड़ी रा आंगणां नैं
अंगरेजी बूंल्या चर रैया है...
अर ऊब रैया है सूरज
पवन सूं बातां करतां-करतां
...अर पसार दी है सड़क
आपणी टांग्यां
‘चतुर्भुज कॉरिडोर’ में
जिण पे आवण वाळा टैम में
मिनखां री लासां...
कारां चलावैगी।</poem>
Delete, Mover, Reupload, Uploader
5,484
edits