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|संग्रह=पद-रत्नाकर / भाग- 4 / हनुमानप्रसाद पोद्दार
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<poem>प्रगटीं राधा रावल में बृषभानू-कीर्ति-दुलारी।
राधा व्रज की ठकुराइन, अभिराम श्याम की प्यारी॥
राधा आह्लादिनि देवी नित माधव पर बलिहारी।
राधा माधव की आत्मा, माधव से कभी न न्यारी॥

राधा नित रास-रसेश्वरि, माधव नित रासबिहारी।
राधा-माधव की लीला शुचि, सत्य, नित्य अविकारी॥
राधा अर्पण की मूरति, हैं श्याम समर्पण-कारी।
राधा आराधन-रत नित, प्रिय राधा आराधनकारी॥

दोनों दोनों के प्रेमी, प्रेमास्पद रस-भंडारी।
नित एक तव दो तन हैं, मधु लीला-रस-बिस्तारी॥

</poem>
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