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{{KKRachna
|रचनाकार=हनुमानप्रसाद पोद्दार
|अनुवादक=
|संग्रह=पद-रत्नाकर / भाग- 4 / हनुमानप्रसाद पोद्दार
}}
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<poem>
भानु घर उत्सव आज महान।
परमानंद-आनँद-दायिनी प्रगट भई सुख-खान॥
रूप अनूप, स्वरूप अलौकिक, आनँद-सुधा-समुद्र।
मिट्यौ मोह-तम, दुरित दह्यौ, देखतहीं दुख-दारिद्र॥
उमग्यौ प्रेम-समुद्र सुद्ध मधु, नस्यौ स्वार्थ कौ बीज।
उखर्यौ बिबिध अनर्थ-मूल, माया कौ बिटप सबीज॥
हरषित इत-उत धावत, गावत-नाचत सब पुर-लोग।
प्रगटीं धन्य करन जग कौं श्रीराधा सुभ-संजोग॥
</poem>
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भानु घर उत्सव आज महान।
परमानंद-आनँद-दायिनी प्रगट भई सुख-खान॥
रूप अनूप, स्वरूप अलौकिक, आनँद-सुधा-समुद्र।
मिट्यौ मोह-तम, दुरित दह्यौ, देखतहीं दुख-दारिद्र॥
उमग्यौ प्रेम-समुद्र सुद्ध मधु, नस्यौ स्वार्थ कौ बीज।
उखर्यौ बिबिध अनर्थ-मूल, माया कौ बिटप सबीज॥
हरषित इत-उत धावत, गावत-नाचत सब पुर-लोग।
प्रगटीं धन्य करन जग कौं श्रीराधा सुभ-संजोग॥
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