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|संग्रह=पद-रत्नाकर / भाग- 4 / हनुमानप्रसाद पोद्दार
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<poem>
अतुल आनन्द भर मन में पुकारो-भानु-नृप की जय।
मोद में मस्त हो बोलो-मातु श्री कीर्तिदा की जय॥
भाद्रपद मास की जय-जय, पक्ष शुभ शुकन की जय-जय।
रुचिर तिथि अष्टमी की जय, काल मध्याह्न की जय-जय॥

सरस वृषभानुपुर की जय, भानु के महल की जय-जय।
कीर्ति के प्रसव-गृह की जय, चमारिन दा‌ई-मा की जय॥
चूर आनन्द-मद में, आज बोलो-राधिका की जय।
सलोने साँवरे गोविन्द राधा-प्राण की जय-जय॥

परस्पर चाव की जय-जय, प्रेम के भाव की जय-जय।
‘तत्सुखी प्रेम’ की जय-जय, प्रेम के नेम की जय-जय॥
अनोखे त्याग की जय-जय, विलक्षण राग की जय-जय।
मधुर अनुराग की जय-जय, हमारे भाग की जय-जय॥

परम आह्लाद से बोलो-अह्लादिनी राधिका की जय।
अह्लादिनी के परम प्रियतम मनोहर श्याम की जय-जय॥

</poem>
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