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चौपालों पर गायन-वादन, झूले हों अमराई में,
गीत मिलन के गूंज उठें फिर पावस की पुरवाई में,
ऊँऊँच-नीच की बातों का अस्तित्व नहीं रहने पाए,
फ़र्क न कोई रहे झोंपड़ी-महलों की ऊँचाई में।
पथ के सब काँटे बुहार कर सुमन बिछाते चले चलो!
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