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|रचनाकार=प्रभुदयाल श्रीवास्तव
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<poem>
छ:दिन बीते किसी तरह से, कल आना है फिर संडे|
खेल खेल के नये तरीके, नूतन सीखेंगे फंडे|

सुबह देर तक सोऊंगा मैं,कोई मुझे जगाना मत|
उठ जाने के बाद कहीं भी,घर का काम कराना मत|
और नाश्ते में खाऊंगा,गरम गरम आलू बंडे|

मित्रों के संग चेयर रेस हम‌, मज़े मज़े से खेलेंगे|
पीकर दूध किलो भर मीठा, खूब दंड हम पेलेगें|
और शाम को खायेंगे फिर, उबले हुये पांच अंडे|

देर शाम को देखूँगा मैं, अच्छी सी पिक्चर जाकर|
भोज करुंगा बढ़िया बढ़िया, अच्छे होटल में जाकर|
देर रात जो सोऊँगा तो, आ जायेगा फिर मंडे|</poem>
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