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Kavita Kosh से
इक रतन, ख़्वाब-ए-रतन का, दिलरुबा मिल जाएगा
हर जवाँ, बच्चे व बूढ़े, मर्द या ख़ातून(स्त्री) को
सैर की ख़ातिर खिलौना, अब बड़ा मिल जाएगा
खिड़कियाँ हैं, कुर्सियां भी, छत भी है, थोड़ी ज़मीं
चिलचिलाती धूप हो, या सर्दियों की सुबहो-शाम
शुक्रिया, टाटा हमें, साधन नया मिल जाएगा
हर बड़ी मोटर का मालिक, रश्क़ से देखेगा जब
भीड़ में नेनो को पहले, रास्ता मिल जायेगा
चार पहिया ख़्वाब थे, पर अब नहीं रह जायेंगे
था किसे मालूम ऐसा, रहनुमा मिल जाएगा
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