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|रचनाकार=हनुमानप्रसाद पोद्दार
|अनुवादक=
|संग्रह=पद-रत्नाकर / भाग- 4 / हनुमानप्रसाद पोद्दार
}}
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<poem>आरति राधा-राधाबर की।
महाभाव रसराज-प्रवर की॥
स्याम बरन पीतांबर-धारी।
हेम बरन तन नीली सारी॥
सदा परस्पर सुख-संचारी।
नील कमल कर मुरलीधर की।
आरति राधा-राधाबर की॥-१॥
चारु चन्द्रिका मन-धन-हारी।
मोर-पिच्छ सुंदर सिरधारी॥
कुंजेश्वरि नित कुंज-बिहारी।
अधरनि मृदु मुसुकान मधुर की।
आरति राधा-राधाबर की॥-२॥
प्रेम-दिनेस काम-तम-हारी।
रहित सुखेच्छा निज, अविकारी॥
आश्रय-विषय परस्पर-चारी।
पावन परम मधुर रसधर की।
आरति राधा-राधाबर की॥-३॥
निज-जन नेह अमित बिस्तारी।
उर पावन रस-संग्रहकारी॥
दिव्य सुखद, दुख-दैन्य-बिदारी।
भक्त-कमल-हित हिय-सरबर की।
आरति राधा-राधाबर की॥-४॥
</poem>
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<poem>आरति राधा-राधाबर की।
महाभाव रसराज-प्रवर की॥
स्याम बरन पीतांबर-धारी।
हेम बरन तन नीली सारी॥
सदा परस्पर सुख-संचारी।
नील कमल कर मुरलीधर की।
आरति राधा-राधाबर की॥-१॥
चारु चन्द्रिका मन-धन-हारी।
मोर-पिच्छ सुंदर सिरधारी॥
कुंजेश्वरि नित कुंज-बिहारी।
अधरनि मृदु मुसुकान मधुर की।
आरति राधा-राधाबर की॥-२॥
प्रेम-दिनेस काम-तम-हारी।
रहित सुखेच्छा निज, अविकारी॥
आश्रय-विषय परस्पर-चारी।
पावन परम मधुर रसधर की।
आरति राधा-राधाबर की॥-३॥
निज-जन नेह अमित बिस्तारी।
उर पावन रस-संग्रहकारी॥
दिव्य सुखद, दुख-दैन्य-बिदारी।
भक्त-कमल-हित हिय-सरबर की।
आरति राधा-राधाबर की॥-४॥
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