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चलो, हल्दी मलें / रमेश रंजक

2 bytes removed, 07:53, 12 अगस्त 2014
<poem>
धूप उल्टे पाँव चल दी है
चलो जल्दी चलें
भर लिया होगा किशोरी
खिड़कियों ने आँख में
अंजन
सो गया होगा मचल कर
कुलमुला कर दुधमुँहा
आँगन
साँझ ने साड़ी बदल दी है
चलो हल्दी मलें चलो जल्दी चलें
धूप उल्टे पाँव चल दी है
</poem>
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