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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=विनोद कुमार शुक्ल|अनुवादक=|संग्रह=सब कुछ होना बचा रहेगा / विनोद कुमार शुक्ल}}{{KKCatKavita}}<poem>प्रेम की जगह अनिश्चित है<br />यहॉं यहाँ कोई नहीं होगा की जगह भी नहीं है.<br /><br />आड़ की ओट में होता है<br />कि अब कोई नहीं देखेगा<br />पर सबके हिस्‍से का एकांत<br />और सबके हिस्‍से की ओट निश्चित है.<br /><br />वहॉं वहाँ बहुत दोपहर में भी<br />थोड़ा-सा अंधेरा है<br />जैसे बदली छाई हो<br />बल्कि रात हो रही है<br />और रात हो गई हो<br /><br />बहुत अंधेरे के ज्‍यादा अंधेरे में<br />प्रेम के सुख में<br />पलक मूंद लेने का अंधकार है.<br />अपने हिस्‍से की आड़ में<br />अचानक स्‍पर्श करते<br />उपस्थित हुए<br />और स्‍पर्श करते, हुए बिदा.<br /><br /poem>
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