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05:03, 21 अगस्त 2014 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=हनुमानप्रसाद पोद्दार
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|संग्रह=पद-रत्नाकर / हनुमानप्रसाद पोद्दार
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<poem>
(राग इमन-ताल कहरवा)
भरे रहो तुम मधुर मनोहर मनके कण-कणमें वसुयाम।
नेत्र निरखते रहें निरन्तर बाहर छबिमय प्रियतम श्याम॥
बहती रहे प्रेम शुचितम की नित्य सुधा-धारा अविराम।
बना रहे जीवन, बस, एक तुहारा सुख-साधन अभिराम॥
जगे न मन में इच्छा कोई, एक तुहारे सुखको छोड़।
लगी रहे प्रत्येक वृािमें, सुख पहुँचानेकी शुचि होड़॥
</poem>