937 bytes added,
08:23, 28 अगस्त 2014 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=पीयूष दईया
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
सुबह का भूला लौटा
शाम में: क्षति भीगा.
मां-पिता
अलौट
शमशान से चले गये होंगे
निधन-वास में रहने. विश्राम कुटी
ख़ाली अभी: पांव नहीं धर सकता, शान्त.
दिया जले कौन जा सकता है वहां? मरे पीछे
का पानी किस के लिए गिरता है?
अपना देखो. मन्दिर को
विरह नहीं: विधि अनजान
विद्यमान है
पात्र परिणत
सब घर
लौटा, क्षति भीगा.
</poem>