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<poem>
सुबह का भूला लौटा
शाम में: क्षति भीगा.
मां-पिता
अलौट

शमशान से चले गये होंगे
निधन-वास में रहने. विश्राम कुटी

ख़ाली अभी: पांव नहीं धर सकता, शान्त.
दिया जले कौन जा सकता है वहां? मरे पीछे
का पानी किस के लिए गिरता है?

अपना देखो. मन्दिर को
विरह नहीं: विधि अनजान
विद्यमान है

पात्र परिणत
सब घर

लौटा, क्षति भीगा.
</poem>
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