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पीठ कोरे पिता-25 / पीयूष दईया

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अश्रृव्य शब्द के
श्री विग्रह की अभ्यर्थना में
प्रस्तुत

धागा है
मणि के इन्तज़ार में
(अ) नेक

पिरो लिया जाय मिलते ही
माला में

कल्याण के लिए
पिता

जपता रहूंगा
कौन जाने कब फेरा लग जाय
</poem>
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