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Kavita Kosh से
रंग और काष्ठ नहीं बल्कि हाड़-मांस
उन्हें पसन्द है मेरा थिर रहना
वह बनावटी हँसी के साथ बोली । बोली। मुझे पसन्द नहीं थिर रहना
मैं चढ़ना चाहती हूँ
माँचू पीच्चू की सीढ़ियाँ