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Kavita Kosh से
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|रचनाकार=पढ़ीस
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<poem>
पपीहा बोलि जा रे!हाली डोलि जा रे !बादर बइरी<ref>वैरी, दुश्मन, शत्रु</ref> रूप बनावयिंमारयिं बूँदन बान।तिहि पर तुइ पिउ-पिउ ग्वहरावइहाँकन हूकु न, मानु। पपीहा बोलि जा रे !हाली डोलि जा रे!
लूकन लूक न लागि।
जागि रहे उयि कहूँ कँधैया
दागि बिरह की आगि।
पपीहा बोलि जा रे!पपीहा हाली डोलि जा रे!
छिनु-छिनु पर छवि हायि न भूलयि
हूलयि हिया हमार।
साजन आवयिं तब तुइ आये
आजु बोलु उयि पार।
पपीहा बोलि जा रे!पपीहा हाली डोलि जा रे! '''शब्दार्थ : बइरी = बैरी, दुश्मन, शत्रु।</Poempoem>{{KKMeaning}}